मैदा और डायबिटीज का संबंध: खतरा कितना है?
‘हम तो मैदा खाते ही नहीं’ यह वो एक पंक्ति है जो मुझे लोगों से अक्सर सुनने को मिलती है जब मैं उनके साथ उनकी दिनचर्या पर चर्चा करने बैठता हूं। लेकिन चलिए देखते हैं कि हम अपनी आहार शैली में कितनी बार मैदे का उपभोग कर रहे हैं (अपने मासिक मैदा खाने की गणना करें) और यह हमारे दैनिक भोजन में शामिल हो रहा है।
- सुबह के बिस्किट, रस्क, सैंडविच।
- लंच टाइम में छोले भटूरे, कुल्चे-छोले।
- शाम के नाश्ते के लिए मोमोज, मैगी, मठरी और नमकीन( पाम आयल में बनी हुई)।
- रात के खाने में नूडल्स, नान, पिज्जा और पास्ता।
कभी एक वक़्त में भारतीय उपमहाद्वीप (जो जैविक विकारों जैसे डायबिटीज की दृष्टि से स्वस्थ होता था) आज दैनिक आधार पर बहुत अधिक सफेद आटे यानी मैदे से बनी चीजों का सेवन कर रहा है।
मैदा क्या है?
मैदा एक सफेद ज़हर है अगर इसकी निंदा करने के लिए यह बहुत कठोर शब्द नहीं है। यह एक प्रक्षालित (साफ किया हुआ) परिष्कृत (प्रोसेस्ड) और बारीक पिसा हुआ सफेद आटा है जो बिना किसी चोकर के गेहूं से बनाया जाता है। केक, पेस्ट्री और डोनट्स जैसी पार्टी मिठाइयों से लेकर सुबह के भोजन जैसे ब्रेड, बिस्कुट और रस्क और शाम के स्नैक्स जैसे बर्गर, पिज्जा और नमकीन तक में ‘मैदा’ एक सर्वव्यापी घटक है और जिसे लगभग हर फेसबुक, यूट्यूब व्लॉगर आपको खाने के लिए मजबूर कर रहा है।
मैदा बचपन में होने वाले मोटापे (चाइल्डहुड ओबेसिटी) का एक बड़ा कारण जो आज आप अपने चारों ओर देख रहे हैं, ये फैंसी खाद्य पदार्थ हैं जो आपने अभी ऊपर पढ़े हैं। अगली बार जब आप ये मैदे से बने भोजन अपने घर लाने का सोचे तो थोड़ा रुकें और फिर पूरा रुक जाएं।
‘मैदे’ पर आयुर्वेद का दृष्टिकोण
मैदा एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जिसमें ‘प्राण’ या ‘जीवनीय शक्ति’ का अभाव होता है। जिसे आप ऐसे समझिये की जब कोई भोजन किसी कारखाने में जाता है जो सूंदर तो लगता है पर जब बाहर आता है, तो उसमे एक संजीवता का अभाव होता है।
साबुत गेहूं मीठा, चिकना और भारी होता है जो कफ को बढ़ाता है, वात और पित्त को कम करता है; उर्वरता बढ़ाता है, हड्डियों के जोड़ों को ताकत देता है, दीर्घायु देता है, और रंगत को बढ़ाता है, जबकि मैदा इन् गुणों में गेहूं का पूरणतः उल्टा है। यह गेहूं के पोषक गुणों को घटाकर बनाया गेहूं का ही एक सुपर फाइन पाउडर है।
मैदा चिपचिपा, पतला और पचने में बहुत भारी होता है। यह लंबे समय तक आंत में रहता है और आंत को एक प्रकार से बंद कर देता है। इसमें रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और कैलोरी की मात्रा भी अधिक होती है। इसमें साबुत अनाज वाले गेहूं की तुलना में फाइबर और पोषक तत्व कम होते हैं। फाइबर शरीर में पचता नहीं है, लेकिन यह रूक्षांश के निर्माण और शरीर से ठोस अपशिष्ट (मल) को बाहर निकालने में सबसे ज्यादा मदद करता है, जो गेहूं में मौजूद होता है, लेकिन मैदे में नहीं। आंत में अधिक देर ठहरने में यह अधिक विषाक्त पदार्थों को जन्म देता है और ब्लॉकेज का कारण बनता है।
यही कारण है कि मैदे का अधिक सेवन करने वाले लोगों को कब्ज की समस्या का सामना करना पड़ता है। (कभी अमेरिका या मध्य पूर्वी देशों में से किसी ऐसे व्यक्ति से मिले जो बहुत अधिक मैदा खाते हैं), वे आपको अपनी इस परेशानी के बारे में बता सकते हैं। दुर्भाग्य से भारत में भी अब ये समस्या आम हो चुकी है और महानगरों में अपने आप में एक स्वतंत्र व्याधि का रूप ले चुकी है।
क्या मैदा मधुमेह रोगियों के लिए हानिकारक है?
एक दम हाँ, क्योंकि न केवल मैदा में उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है बल्कि यह पचने में भी भारी होता है। इससे निकली शर्करा तुरंत रक्तप्रवाह में आ जाती है जो शरीर को रक्त में शर्करा के स्तर को संतुलित/नियंत्रित करने के लिए अधिक इंसुलिन को पंप करने में भाधित करती है। मैदे के भोजन के नियमित सेवन से इंसुलिन का शरीर की कोशिकाओं पर कार्य करना और ऊर्जा के लिए चीनी का उपयोग करना मुश्किल हो जाता है,
जो लोग मैदे का सेवन करते हैं वे शरीर में ऊर्जा की कमी की शिकायत करते हैं। यह सब इंसुलिन प्रतिरोध पैदा करता है और शरीर में लगातार उच्च शर्करा का स्तर बनाता है और अग्न्याशय को अधिक इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए विवश करता है और शरीर में हाइपरिन्सुलिनमिया की स्थिति बना देता है। इस हाइपरइंसुलिनमिया की स्थिति से लोगों को वजन कम करने में और भी मुश्किल हो जाती है। मैदा शरीर को सिर्फ बस खाली कैलोरी ही देता है और मैदे से बने खाद्य पदार्थ अपने अवशोषण में सहायता के लिए शरीर से पोषक तत्व छीन लेते हैं, जिससे शरीर के विटामिन और खनिजों के भंडार कम हो जाते हैं। यही कारण है कि हमें हमेशा जरूरत से ज्यादा खाने, फिर भी भूखे रहने तथा कुपोषित होने का अहसास होता है।
तले हुए मैदे के उत्पाद इसे और खराब कर देते हैं! जब मैदे वाले खाद्य पदार्थों को तला जाता है — उदहारण के तौर पर समोसा, चकली, फ्राइड नूडल्स, चीज़ पास्ता, इटालियन लज़ान्या से शरीर में वसा और परिष्कृत कार्ब्स की अधिकता हो जाती है, जो आपके चयापचय को रोकता है और बाधित करता है, जिससे हाइपरिन्सुलिनमिया, इंसुलिन प्रतिरोध और अंततः टाइप II मधुमेह, हृदय रोग, तथा अन्य बीमारियां होती है। जिसमें अल्जाइमर और यहां तक कि कैंसर जैसे रोग भी शामिल हैं।
मैदा खाने से आपका खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) भी बढ़ता है, जिससे मोटापा भी आता है, धमनियों को अवरोधन होता है, रक्तचाप बढ़ाता है, रक्त शर्करा को बाधित करता है, आपको भूखा रखता है, आपको मिठाई खाने की लालसा पैदा करता है, चिड़चिड़े मिजाज का कारण बनता है और आपके स्वास्थ्य को बर्बाद कर देता है।
मैदे के स्थान पर कुछ स्वस्थ विकल्प- शीग्र ही अगले ब्लॉग में जारी रहेंगे……
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