ठण्ड में स्वस्थ रहने के लिए क्या करे और क्या नहीं?
सर्दियां हमारे चारों ओर जीवंत रंगों का मौसम लेकर आती हैं। हमारे आस पास लोग रंगीन स्वेटर, सर्दियों के कपड़े पहने हुए दिखते हैं। पेटुनिया, गुलदाउदी, डेलिया जैसे फूल इस मौसम की खूबसूरती को साथ बढ़ा देते हैं। उत्तर भारत के घरों में हर कोई पंजीरी, मेवे, आटा और गौंद लड्डू के रूप में घर की मिठाइयों के साथ सर्दियों का स्वागत करता है।
जहां सर्दियां हमारे चारों ओर बहुत आकर्षण लाती हैं। वहीं यह एक ऐसा मौसम भी है जब हमें सर्दी, खांसी, नाक बहना, सांस लेने में तकलीफ और जोड़ो के दर्द-विकारो जैसी कई तरह की समस्याएं होती हैं। दुर्बल-क्षीण तथा कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोग इन् सब बदलावों और विकारो को हृष्ट-पुष्ट व्यक्तियों की तुलना में बहुत ज्यादा अनुभव करते हैं। यह छोटा सा लेख उन कुछ चीजों के बारे में है जो सर्दियों में इस संकट का मुकाबला करने में आपकी सहायता कर सकता है।
आधुनिक समय में इन स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का अनुभव हमे यह बताता है कि हम मौसम के बदलाव के लिए खुद को तैयार नहीं करते हैं। दीपावली के आसपास के दिनों में हम बहुत सारी मिठाइयाँ खाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में ‘कफ’ का संचय हो जाता है। ‘कफ’ वात और पित्त की तरह एक दोष है जो जब दूषित होता है तो शरीर में उपरोक्त रोग उत्पन्न करता है। या उन्हें बढ़ाने में कारक होता है।
आयुर्वेद के अनुसार ‘मीठा’, ‘मधुर रस’ शरीर में कफ को उत्पन्न करने और प्रकोप करता है। अगर जरूरत से ज्यादा इस रस का सेवन किया जाए तो परिणामस्वरूप ये बीमारियां होने की सम्भावनाये बहुत बढ़ जाती हैं। यद्धपि बाहर ठंड के वातावरण से बचने के लिए ऊर्जा और कैलोरी को बनाए रखने के लिए ‘मधुर’ रस की आवश्यकता होती है। फिर भी किण्वित मिठाइयाँ जैसे पेस्ट्री, ब्रेड के मीठे उत्पाद, और प्रोसेस्ड मिठाइयाँ इन् रोगों के लिए अत्याधिक जिम्मेदार हैं।
स्वस्थ रहने के लिए हमारा सही मार्गदर्शन आयुर्वेदिक सिद्धांतों का पालन करना है जो शरीर से ‘कफ’ के संचय को दूर करने में मदद करते हैं। हमारे द्वारा ली जाने वाली हर मिठाई में हम एक एंटी-धोट जोड़ सकते हैं। और उन मिठाइयों को खाने से बचते हैं जो हमारे लिए नहीं हैं। नीचे दिया गया यह त्वरित संदर्भ लोगों को उनके पसंदीदा भोजन को खाने और इस मौसम में नहीं किए जाने वाले भोजन से बचने में मदद कर सकता है।
शीत ऋतु में किस प्रकार का भोजन करना चाहिए?
- देसी गाय का घी
- गर्म और तभी बना हुआ भोजन
- खाना पकाने में तिल के तेल/देसी घी का प्रयोग करें।
- घर की बनी मिठाइयाँ जैसे पंजीरी, काली मिर्च और मेथी दाने के बने आटा लड्डू।
- घूंट-घूंट करके गर्म पानी पिएं, और अपने पानी की मात्रा को मापें क्योंकि सर्दियों में अक्सर लोग अपने पानी के सेवन से चूक जाते हैं।
क्या खाने से परहेज करें?
- दही, केला, अरबी, बैंगन, भिंडी, अत्यधिक आलू, मटर और ऐसा भोजन जो शरीर में म्यूकस/बलगम बनाता है।
- जोड़ों के दर्द वाले लोगों को साग खासतौर पर बासी साग जैसे भोजन से बचना चाहिए। जो शरीर में ‘वात’ को बढ़ाता है क्योंकि ठंड और शुष्क ‘वात’ पहले से ही वातावरण में बढ़ा हुआ होता है। ऐसा करने से जोड़ो के दर्द और बढ़ जाता है।
- कढ़ी(खासतौर पर दुबारा गरम की हुई), राजमा, काबुली छोले।
- जंक फूड, मेयोनेज़ युक्त भोजन और रिफाइंड तेल, संसाधित कार्बोहाइड्रेट आदि से बने भोजन।
किस प्रकार की जीवन शैली का पालन करना चाहिए?
- फैंसी सिंथेटिक, नायलॉन से बने कपड़ों की जगह गर्म ऊनी कपड़े पहनें। और शरीर के अंगों को ढक कर रखे।क्योंकि ऐसा करने से त्वचा रूखी नहीं होगी।
- कमरे का एक तापमान बनाये रखें जो शरीर के लिए आदर्श हो।
- पूरे शरीर या जोड़ों की मालिश (अभ्यंग) के बाद भाप (स्वेदन) का उपयोग करे और इनके के लिए अपने आयुर्वेद चिकित्सक द्वारा निर्धारित औषधीय तेलों/औषधियो का प्रयोग करें।
किस प्रकार की जीवन शैली से बचना चाहिए?
- दिन में सोना। पर आप दोपहर के समय धूप में समय बिता सकते हैं जहाँ सीधी हवा ना लगती हो।
- ठंडी हवा के सीधे संपर्क में आने से बचें।
- कोयले, लकड़ी और हीटर से उत्पन्न गर्मी के बहुत करीब और सीधे संपर्क में आने से बचें जिससे शरीर में पानी की कमी हो सकती है जिससे और रुक्षता उत्पन्न हो सकती है।
घरेलू उपचार तथा दवाइयाँ
- इस मौसम में भी हमेशा की तरह, व्यक्ति की खुद की प्रतिरक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । जिसका सबसे अच्छा उदाहरण हालिया कोरोना महामारी से है जहां 70 साल का एक व्यक्ति रसोई और घरेलू उपचार करके इस महामारी से बच गया। जबकि इसके विपरीत एक 20 साल का युवा कोविड-19 से जंग हार गया। जिसका एक मात्र कारण केवल एक ही चीज़ में ही समाहित है और वह है- इम्युनिटी।
- रोग प्रतिरक्षा थोड़े समय में नहीं बन सकती है। और इसे समय के साथ बनाने की जरूरत है- उचित आहार लेना, सही जीवन शैली अपनाना जो आपके लिए सबसे उपयुक्त हो, प्रतिरक्षा के निर्माण में मदद करती है।
- आयुर्वेदिक दवाएं और जड़ी-बूटियां लंबे समय तक चलने वाली प्रतिरोधक क्षमता बनाने में काफी मदद करती हैं। अगर आपके घर में अच्छी क्वालिटी का ‘च्यवनप्राश’ है, तो उसका इस्तेमाल शुरू कर दें। यह प्राचीन ज्ञान लगभग हर घर में पाया जाता है, लेकिन वर्तमान में, युवा पीढ़ी जो इसका उपयोग नहीं करती है, उन्हें इसका उपयोग करना चाहिए।
- औषधीय तेलों के साथ ‘नस्य’ के रूप में आयुर्वेदिक प्रक्रियाएं साइनसाइटिस, राइनाइटिस, सिरदर्द और श्वास संबंधी विकारों के रोगियों की मदद करती हैं।
- मौसमी सर्दी और खांसी के लिए तुरंत एंटीबायोटिक दवाओं के लिए जल्दी मत कीजिये। इसे ठीक करने के लिए अपने शरीर को काम करने दें। लगातार बनी रहने वाली गीली खांसी के लिए लौंग, इलायची और काली मिर्च एक-एक लेकर इसे मुँह में रखे क्युकि यह खांसी रोकने के साथ-साथ एक एंटी-एलर्जी किट के रूप में काम करेगा और आपकी एंटी-एलर्जी गोली से बेहतर होगा, जो आपको पूरे दिन सुस्त बना देती है।
- आप तुलसी, हल्दी, दालचीनी, लहसुन का उपयोग भी बढ़ा सकते हैं। क्युकि हम लोग सदियों से इनका उपयोग कर रहे हैं। लोगों को हाल ही में अश्वगंधा, गिलोय को सेल्फ-मेडिकेशन के रूप में उपयोग करते पाया गया है। जो सही नहीं है। आप अपनी ‘आयुर्वेदिक प्रकर्ति’ को जानकर ही और अपने आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श करके ही इन सब औषद्धो का सेवन करना चाहिए।
शीत ऋतु में आपको स्वस्थ रहने की शुभकामनाएं ।
Very useful information.
Thanks doc sahab.
Very useful information as always keep it up sir serve humanity great work
Great information sir ji